हरमिलापी गीत
हरमिलापी बनकर दुनिया में सदा गुजरान कर |
दिल किसी का मत दुखा, हर में हरी पहचान कर ||
परम पिता परमात्मा की हम सभी संतान हैं |
ना कोई छोटा बड़ा है, व्यर्थ न अभिमान कर ||
ना कोई अपना बेगाना, प्राणी मात्र से प्यार हो |
सेवा दुखियों की करो कर्तव्य अपना मानकर ||
सेवा, सुमिरन, सादगी, सत्संग, संयम भी करो |
ईर्ष्या-द्वेष को दूर हटा, हर एक का सम्मान कर ||
हृदय में राम, वाणी में नाम, हाथों में तेरे काम हो |
कथनी-करनी हो एक सी, रत्न विद्या दान कर ||
माता-पिता गुरुदेव की सेवा देश की अनिवार्य हैं |
है यही हरमिलाप मिशन जन-जन का तू कल्याण कर ||